रविवार, 6 फ़रवरी 2011

अनमोल बिटिया

मैंने जब उसे पहली बार देखा,
तो मेरी अपलक आखें
उसे देखती रह गयी,
देखकर सोचा कि
कहीं ना कहीं
यह मेरी ही प्रतिमूर्ति है,
जिसके लिए मैं बेचैन था
जब उसे हाथों में उठाकर,
 अपने में समेटना चाहा तो
 लगा कि वह बदजबान
मुझसे कुछ कहना चाह रही है.
शायद वह कह रही है,
कि आप परेशां ना हो,
मै आपके घर बोझ बनकर नहीं,
अपितु लक्ष्मी बनकर आई हूँ.
सदेव आपकी सेवा करूंगी ,
ओर आपकी चरणों में रहूंगी.
तो मुझे लगा कि,
बिटिया कितनी अनमोल होती है

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