बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

रसोईघर

हर घर की तरह मेरे घर में भी
एक रसोईघर है
ऐसा घर जो घर को पूर्ण बनाता है
शादी के बाद मुझे इस घर
के महत्व का पता चला
पत्नी के कामकाजी होने के कारण
जब मै सुबह -सुबह उस घर में जाता
तो मैं यही सोचता की किस तरह
एक औरत दिन भर उस घर में रहकर
चाहे अनचाहे दिन भर काम करती है
खाना बनते समय वह हमेशा यही
सोचती है की खाना स्वादिस्ट बने
जिसे वह अपने घरवाले के समक्ष
प्रसन्नता से परोस सके ।
लेकिन जब उसका घरवाला कुछ
नही बोलता तो वह सोचती
जरूर कोई कमी रह गई है
और वह रसोईघर में जाकर
अपने काम में लग जाती
और मन ही मन कहती की
अगली बार जरूर प्रसंशा लूंगी

बुधवार, 9 सितंबर 2009

पिता की चाहत

शादी का मंडप सजा हुआ था
द्वार पूजा होने वाली थी
दूल्हा घोडे पर बैठा मुस्करा रहा था
और
उसके दोस्त बाजे की ताल
के साथ नाच रहे थे
चारो तरफ ख़ुशी का माहोल था
लेकिन
इस ख़ुशी के माहोल के बीच
एक की आखें गमगीन थी
उसे पता था की आज उसकी लड़की
किसी और की हो जायेगी
फिर उसने मन ही मन सोचा की
हर बाप अपनी बेटी को विदा करता है
इसमें उदास होने की क्या बात है
लेकिन उसकी आँखें कुछ और बता रही थीं
उसकी बेटी प्रेम विवाह कर रही थी
वह भी ऐसे लड़के के साथ
जो शराबी और कबाबी है
लेकिन वह अपनी बेटी के जिद
के आगे मजबूर है क्योकि
वह उसकी एकलोती बेटी है
और इस चाह के आगे वह आपनी
चाहत को मार रहा है

रविवार, 6 सितंबर 2009

खुशी

जीवन की खुशी,
बड़ी सी खुशी,
जैसे ही हमारे जीवन में आई .
हमने उसका नाम भी रखा खुशी
वह अपने जीवन पथ पर
ज्यों -ज्यों आगे बढती गई
हमारे जीवन में भी
त्यों -त्यों खुशीया बढती गई.
जब उसने अपनी जबां से मुझे
पहली बार पापा कहा तो
मैं सोचने लगा की मैं अब बड़ा हो गया
अपने उतरदायित्व को समझना होगा .
अपने लीये न सही ,
अपनी खुशी के लीये कुछ करना होगा .
एक दीन ऐसा भी आया
जब हमारी खुशी कीसी और की
खुशी हो गई,
हमारी आँखे नम हो गई
सहसा फीर याद आया की
खुशी की खुशी में ही हमारी
खुशी है
उसके बाद हमारे चेहेरे पर
हलकी सी मुस्कान छा गई .