गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

बदलते चेहरे

चेहरे को अपने
 आईने में देखकर
हो गया भौचक्का
मुझे लगा ही नहीं
की यह मेरा चेहरा है
क्योकिं
इसमें तो मासूमियत और
मुस्कान बस्ती थी.
जो सभी को अपनी तुतुलाहट से
अपनी तरफ आकर्षित करती थी,
मेरी हर नासमझी पर माँ
प्यार से दुत्कारती थी.
मेरा मन  कहने लगा कि मैंने,
अपने चेहरे को बिगाड़ लिया है,
नहीं ऐसा नहीं हो सकता मैंने
अपने चेहरे को ख़राब नहीं किया
ऐसा काम तो समाज और
ख़राब समय ही कर सकता है
शायद इन्होने ही मेरे चेहरे पर
कुरूपता डाल दी है.
और यह निरंतर परिवर्तित होकर
भयानक हो गयी है

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