मीडिया के तीन प्रमुख
उद्देश्य – सूचना , शिक्षा और मनोरंजन है. इनमें मनोरंजन का संबंध फिल्म,रियलिटी शो , धारावाहिक आदि से है. इनके निर्माण में
करोड़ों रुपया खर्च होता है. इसके निर्माण में धन निवेश करनेवाला व्यक्ति
निर्माता होता है जिसका सीधा संबंध मुनाफा
कमाने से होता है. वह मुनाफा तभी कमा सकता है जब उसके द्वारा निर्मित फिल्म या
धारावाहिक दर्शक केंद्रीत हो. दर्शक या श्रोता मनोरंजन चाहते हैं और नवीनता को
पसंद करते हैं. दर्शकों को संतुष्ट और उनसे वाहवाही पाने के लिए ऐसे धारावाहिकों, कार्टून फिल्मों तथा फीचर फिल्मों का निर्माण किया जाता है जिनमें नजारें
दुनिया के हों परंतु भाषा अपनी हो. वास्तव में अनजाने,
अनदेखे एवं अलग से लगनेवाले जगहों या व्यक्तियों को अपनी भाषा में बातचीत करते हुए
देखना एक सुखद व रोमांचकारी अनुभव होता है. इसी अनुभव को दर्शको तक पहुँचाने के
लिए डबिंग का सहारा लिया जाता है जो आज बहुत लोकप्रिए हो गया है. डबिंग तभी सफल
माना जाता है जब उसे अनुदित करनेवाला व्यक्ति की पकड़ दोनों भाषाओं में एक जैसी हो
इसलिए आजकल इसमें अनुवादकों की माँग बढ़ गई है.
डबिंग एक भाषा से दूसरी भाषा में किए गए अनुवाद को दर्शकों
तक पहुँचाने का माध्यम है. आज डबिंग का महत्व मनोरंजन के हर क्षेत्र में दिखाई दे
रहा है, चाहे वह कार्टूनफिल्म हो, ऐनिमेशन फिल्म हो, फीचर फिल्म हो या कुछ और. किपलिंग की पुस्तक ‘जंगल
बुक’ का मोगली ‘जंगल- जंगल बात चली है, चड्डी पहन के फूल खिला है’ हिंदी में गाते हुए
बच्चों के समक्ष टेलिविजन पर आता था तब वे टेलिविजन से ऐसे चिपक जाते थे कि उन्हें
अपनी मुँह्मांगी हुई कोई वस्तु मिल गई हो. यहीं
प्रमाद आज बच्चों को ‘डोरेमन’, ‘सिनचॉन’ ,बार्बी, ‘निंजा हथौड़ी’ ‘ऑगी एंड काकरोच, ‘टोम एंड जेरी’ ‘छोटा भीम’ जैसे अन्य कार्टून फिल्म या एनिमेशन फिल्म
देखकर मिलता है. इसीतरह जापान में बनी ‘रामायण’ और अंग्रेजी में बनी ‘अलादीन’ को बच्चे अपनी भाषा में
देखकर गौरवान्वित महसूस करते हैं. डबिंग के माध्यम से ही डिस्कवरी और नेशनल
ज्योग्राफिक चैनलों की पहुँच भारत के कोने-कोने में है.
पिछले कुछ वर्षों से हिंदी में अंग्रेजी से डब की गई
अनेक फिल्में प्रदर्शित हुई है. ऐसा नहीं है कि दूसरी भाषा से हिंदी में या हिंदी
से दूसरी भाषा में डब होने का सिलसिला नया है यह तो काफी पहले से होता आ रहा है.
लेकिन पहले एकाध को छोड़कर इन फिल्मों में ज्यादातर ‘सी ग्रेड’ की या सुबह के शो में आनेवाली सस्ती कामुक फिल्में ही होती थी. आज हॉलीवूड या
क्षेत्रीय भाषाओं की डब फिल्मों ने भारतीय दर्शकोंको बहुत प्रभावित किया है. इससे डबिंग व्यापार को बढ़ावा मिला है और
अनुवादकों को रोजगार के कई अवसर प्राप्त हो रहे हैं. जिसतरह हिंदी की पहली फिल्म
1913 ई. की ‘राजा हरिश्चंद्र’ है उसीतरह पहली डब फिल्म ‘कर्म’ है जो 1933 ई. में बनी थी. इस फिल्म का
निर्देशन जे. एल. फ्रीअर हँट ने किया था और तकनीकि काम ब्रिटिश तकनीशीयनों ने किया
था. दीवान शारर की कहानी की पटकथा रूयर्ट डाउनिंग ने तैयार की थी. जिसमें दो
परस्पर विरोधी रजावाड़ों के प्रगतिशील
राजकुमार और राजकुमारी की प्रेम कहानी को दिखाया गया था. इस फिल्म में चार गानों
में से एक गाना का फिल्मांकन अंग्रेजी भाषा मे किया गया था जिससे हिंदी फिल्मों
में अंग्रेजी गाने की शुरुआत हुई थी. इस फिल्म में हिमांशुशेखरऔर देविका रानी ने
असाधारण अभिनय किया था. इसी तरह जब राजकपूर की बहुचर्चित फिल्म ‘आवारा’ के डब को जब जब रुस के
दर्शकों ने रूसी भाषा में देखा तो वे राजकपूर के दिवाने हो गए. हिंदी की कई
फिल्में दक्षिण में डब करके दिखाई जाती है तो दक्षिण की कई फिल्में आज डब होकर हिंदी में प्रदर्शित हो रही हैं और दर्शकों को
आकर्शित कर रही हैं. दक्षिण से बड़ी फिल्मों की हिंदी में डब होकर आने की शुरुआत
1993 की मणिरत्नम की फिल्म ‘रोजा’ से मानी जाती
है. इस फिल्म को जब हिंदी भाषी लोगों ने गले लगाया तो वहाँ से आनेवाली डब फिल्मों की आवाक और तेज हो गई.
दक्षिण की बहुचर्चित और प्रभुदेवा अभिनित फिल्म ‘कादलन’ का डब जब हिंदी भाषा में ‘ हमसे है मुकाबला’ नाम से प्रदर्शित हुआ तो इस फिल्म
ने व्यावसायिक रूप से अपने झंडे गाड़ दिए. हिंदी सिनेमा की पहली सौ करोड़ी फिल्म ‘गजनी’ भी डब हुई थी जिसका प्रदर्शन कई भाषाओं मे हुआ
था. आज की सर्वाधिक हिट फिल्म ‘रावण’ ‘चेन्नई एक्स्प्रेस’ ‘धूम 3’, ‘कृष 3’ ‘जय हो’ जैसी फिल्में एक साथ कई भाषाओं में डब होकर
कई देशों में एक साथ प्रदर्शित होती है और 200-300 करोड़ कमाकर निर्माता को मुनाफा
का सौदा करवाती है जिससे प्रभावित होकर आज अधिकतर निर्माता अपनी फिल्म वर्ल्ड
राईट्स मुनाफे में बेचता है. बहुत सारे हिंदी फिल्मों की डबिंग कई भाषाओं में हुई
है जिसमें से प्रमुख है- ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे’, ‘दबंग’,रेड्डी’, ‘दबंग’, ‘वीरजारा’, ‘बॉडीगार्ड’ आदि. इसीतरह कई अंग्रेजी फिल्म भी डब होकर हिंदी में आई हैं और उसने अपनी
सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं.ऐसी फिल्मों में प्रमुख हैं— ‘स्लमडॉग
मिलेनीयर’, ‘जुरासिक पार्क’, ‘होम अलोन’, ‘स्पीड’, ‘डीप इंपैक्ट’, ‘परफेक्ट मर्डर’,’मैन इन
ब्लैक’,’अनाकोंडा’, ‘ममी’,’वार एंड पीस’,’ द
ग़ॉडफादर’, ‘द टाईम मशीन’, ‘ग्रेटएक्सपेटेशन’, ‘टाइटैनिक’, ‘हैरी पौटर, आदि. इसीतरह कई विदेशी सिरियल भी डब होकर हिंदी में दिखाया जा चुका है
जिसमें प्रमुख है- ‘स्मॉल वंडर’, ‘हू इज द बॉस’, ‘डिफरेंट
स्ट्रॉक’, ‘लिटिल मरमेड’, ‘24’ आदि.
डबिंग देखने में तो अनुवाद लगता है लेकिन इसका अनुवाद करना
बहुत कठिन काम होता है. इसके अनुवाद में अनुवादक को भाषा की मुखरता, गति, मुहावरा और
रवानगी का तो ध्यान रखना ही होता है साथ
ही उसे अभिनेता के मुख से निकली मूलभाषा की ध्वनियों के कारण हुए होठों के फैलाव
का भी सबसे अधिक ध्यान रखना होता है. क्योंकि यदि अनुवादक ने इसपर ध्यान नहीं दिया
तो शब्दों और मुँह के फैलाव में तालमेल नहीं बैठ पाएगा. इस संदर्भ में प्रमुख
निर्माता निर्देशक सत्यजीत रे का कहना है कि “डबिंग फिल्म
का अनुवादक एक ऐसी फिल्म को लक्ष्य भाषा में शब्द देता है जिसने पहले ही छवि और
रूप प्राप्त कर लिया है”. इसतरह डबिंग के अनुवाद में अनुवादक को हर
तरह से चौक्कना रहते हुए डबिंग के व्याकरण को समझना होता है जो असधारण काम है और
यह असाधारण काम केवल अनुवादक ही कर सकता है. यह साल चुकि हिंदी सिनेमा का 101वाँ
साल है हमने2013 में हिंदी सिनेमा के सौ वर्ष पूरा किया है और इन सौ वर्षों मे
हमने बहुत कुछ पाया है साथ ही इसमें कई तरीकों को भी इजादकिया गया है. इसमें डबिंग और रिमेक
महत्वपूर्ण है. यदि आप सभी का इसीतरह भरपूर सहयोग मिलता रहेगा और इसमें दिलचस्पी
दिखाएँगे तो आने वालेअंकों में हमारी टीम हिंदी सिनेमा के रूपांतरण, डबिंग, रिमेक, सिक्वल आदि में
अनुवाद की महत्ता पर एक विशेषांक निकालना चाहेंगे जिससे हम इस सिनामाई व्यवस्था को
अच्छी तरह समझ सकें.