बुधवार, 15 सितंबर 2010

भयानक भेड़ियाँ

पग- पग पर और हर घर में
एक भयानक भेड़ियाँ
नज़र गड़ाये बैठा है
अपनी बहू-बेटियों पर
वह कोई और नहीं अपना
ही बहुत करीबी है
उसे पता है कि उस
पर कोई शक़ भी नहीं करेगा
वह अपने को पाक़-साफ़
और हर औरत को बदचलन
समझता है
क्या उसे मालूम नहीं है की
औरत जन्म से ही बदचलन नहीं होती
बल्कि बदचलन बनानेवाला उसी में से
कोई एक है
जो अपने भूख को शांत करने के लिए
किसी भी औरत की इज्जत से
खिलवाड़ कर सकता है.

खोज

जब भी होता हूँ परेशान
सोचता हूँ कुछ
और लिखता हूँ कविता
उठाता हूँ कलम
क्या लिखूँ मैं
यह सोचते हुए
एक सफेद कागज पर
बनाता हूँ कुछ काली लकीरें
उसमें खोजता हूँ अपना चेहरा
नहीं मिलता जब अपना चेहरा
हो जाता हूँ मैं उदास
उदास बहुत उदास..............

रविवार, 12 सितंबर 2010

हाइकु

हाइकु एक जापानी काव्य विधा है.
जिसमें 5,7,5 के क्रम से 17 अक्षरों की तीन पंक्तियाँ होती है
हाइकु प्रधानतः जीवन एवं प्रकृति के सौंदर्यबोध की यथावत अभिव्यक्ति के रूप में एक अतुकांत कविता है.
हाइकु में शिल्प और भाव दोनों का महत्व होता है.
इसकी तीन पंक्तियों में से एक पंक्ति इस बात की बोधक होती हैं कि हाइकु का संबंध कौन सी ऋतु से है.
हाइकु पर बौद्ध धर्म के जापानी रूप जैन दर्शन एवं चिंतन की गहरी छाप मानी जाती है. उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं____
उषा बेला में
गगन बदलता
रंगीन बस्त्र.

शनिवार, 4 सितंबर 2010

गुरू का सम्मान

हैं जीवन का आधार वो
करते हैं सब पर उपकार
है लेने का स्वार्थ ना उनमें
देने में हैं वो उदार
जीवन भर करते उपकार
हर रिश्ते नाते निभाते
सही राह वे हमें दिखाते
नयी उर्जा का सृजन कराते
हैं हर पथ पर हिम्मत बंधाते
ज्ञान के साथ जीना सिखाते
हर कठिनाइयों में साथ निभाते
गुरू होते हैं इतने महान
नहीं कर पायेंगे हम उनका
शब्दों में गुनगान
दुनिया में सबसे उंचा
है उनका स्थान
उनके बिना हैं हर कोई अज्ञान
उनके आदर्शो का हम रखें ध्यान
जिससे बना सकें हम
अपनी अलग पह्चान
सही अर्थों में यही है
गुरू का मान- सम्मान.

विस्वास

जीवन की डोर,न कोई ओर
न कोई छोर, पर एक मजबूत बंधन
जिसे बांधनें की होड़
में हमेशा रहा हू मैं दौड़
पता नहीं इस दौड़ में मुझे
क्या मिलेगा?
लेकिन है आंतरिक विशवास
जो मिलेगा वह
सबसे हटकर होगा
क्योकि
सबसे हटकर जीना ही
जीना है...................