आज फिर गर्मी के बाद
मौसम
सुहावना हुआ है
यह गर्मी केवल मौसम की ही नहीं
बल्कि मेरे जीवन की भी है
क्योकि
अब तक मैंने अपने अंदर की तपन
को दबा कर रखा था
अब वह छटपटा कर बाहर
निकलना चाहती हैं
मुझे ऐसा लग रहा है की
अंदर की गर्मी के जाने के
बाद मैं बिल्कुल ठंडा पर जाऊं
और एक लक्वेग्रस्त आदमी की तरह
मेरे भी अंग शिथिल हो जाये
नहीं, नहीं ऐसा नहीं होगा
यह तो जीवन की रीत है
मुझे अपने अंदर की गर्मी को
बचाकर रखना होगा
साथ ही इस गर्मी को सुवाहना
रूप देना होगा
रविवार, 13 जून 2010
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