रविवार, 13 जून 2010

chatpatahat

आज फिर गर्मी के बाद
मौसम
सुहावना हुआ है
यह गर्मी केवल मौसम की ही नहीं
बल्कि मेरे जीवन की भी है
क्योकि
अब तक मैंने अपने अंदर की तपन
को दबा कर रखा था
अब वह छटपटा कर बाहर
निकलना चाहती हैं
मुझे ऐसा लग रहा है की
अंदर की गर्मी के जाने के
बाद मैं बिल्कुल ठंडा पर जाऊं
और एक लक्वेग्रस्त आदमी की तरह
मेरे भी अंग शिथिल हो जाये
नहीं, नहीं ऐसा नहीं होगा
यह तो जीवन की रीत है
मुझे अपने अंदर की गर्मी को
बचाकर रखना होगा
साथ ही इस गर्मी को सुवाहना
रूप देना होगा