बुधवार, 14 सितंबर 2011

एलबम में रहती हैं खुशियाँ


मैं दूर हूँ अपने माता-पिता से,
और जब उनकी याद आती है,
चाहकर भी मैं उनसे नहीं मिल पाता
तो जाकर घर में रखी हुई,
एलबम खोल लेता हूँ.
उसे देखकर ऐसा लगता है,
कि आज के बजारवाद और,
भागमभाग भरी जिन्दगी में,
परिवार बिखर कर,
एलबम में रहने लगे हैं.
एलबम देखकर और फोन से बात कर,
किसी तरह अपने आप को समझाता हूँ,
पहले पापा जब मेरा जन्मदिन मनाते,
तो ऐसा मह्सूस होता कि,
मैं जीवन के एक नए,
वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ.
आज जब सब कुछ है,
पर जीवन में वह खुशी,
और मिठास नहीं है.
क्योंकि,
वह गुजरा हुआ पल साथ नहीं है.
जिसे मैनें अपने परिवार के साथ बिताया था.
फिर मैं एलबम खोल उस मधुर स्मृति में खोकर,
अनायास ही कहता हूँ कि,
अब एलबम में रहती हैं खुशियाँ......


रविवार, 11 सितंबर 2011

सच्चाई

सच्चाई

मैनें सुना है कि,
कुछ खोना सच्चाई है,
लेकिन अपना देश ,
जो लगातार कुछ खो
रहा है वह कैसी सच्चाई है?
कभी भ्रष्टाचार से,
कभी आतंकवाद से,
कभी धार्मिक उन्माद से,
तो कभी साम्प्रादायिक्ता से,
इनके सामने हम लगातार बेवस हैं.
कलहिं जो लोग न्याय के आस में,
उच्च न्यायलय गये थे,
उन्हें न्याय तो न मिला लेकिन,
आतंकवादियों ने उनके जीवन की,
अंतिम तारीख जरूर डाल दी.
जिसने अपने भाई-बन्धुओं को खोया है,
उन्हें पता है कि वे,
किस सच्चाई से गुजर रहे हैं.
इतने बड़ॆ हमले के बाद भी हमारे नेता,
चैनल पर बैठकर मरहम लगाने से परे,
अपनी राजनीतिक गोटी सेंक रहे थे,
तब मुझे लगा कि जब तक ऐसे,
नेताओं को जीवन की सच्चाई का,
पता नहीं होगा तब तक हमारा,
देश ऐसे ही अपूर्ण सच्चाई के
ईर्द-गिर्द घुमता रहेगा......