अपनी कुटिया में वट-वृक्ष
की छाया में बाबा प्रेमनाथ ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे और उनके सामने उनके
भक्तों का ताता लगा हुआ था. भक्तों में अधिकतर युवा दिखाई दे रहे थे. युवाओं के
उत्साह को देखकर ऐसा लग रहा था कि आज कोई न कोई उनका त्योहार है. हमारे देश में
ऐसे तो प्रतिदिन ही कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है लेकिन कुछ को छोड़कर सभी में
युवा उत्साह नहीं दिखाते. हर त्योहार की अपनी एक आत्म कथा होती है और आज के माहौल
को देखकर भी लग रहा है कि आज (14 फरवरी) के त्योहार की भी कोई गौरव गाथा है. यह गाथा उस
त्योहार की है जिसके संदर्भ में आज का हर जवाँ दिल सोचता है और उसमें शामिल होना
चाहता है. तभी एक ओर से आवाज आती है— “जय हो हीर मैय्या की. जय हो राँझा बाबा की”
और उसे सुनकर वहां बैठे युवा भक्त उसे दोहराते हुए कहते हैं –“जय हो हीर मैय्या
की. जय हो राँझा बाबा की”. तभी दूसरी ओर से आवाज आती है “ जय हो लैला मैय्या की, जय हो मजनू बाबा की” और
वहाँ बैठे हुए सभी व्यक्ति जोश में भरकर उसे दोहराते हैं. तभी बाबा प्रेमनाथ
धीरे-धीरे अपनी आँख खोलते हैं और सामनें बैठे हुए युवा भक्तों की भारी भीड़ को
देखकर मन ही मन प्रफुल्लित होते हुए उनके ओर अपनी हाथ को उठाकर ऐसे दिखते हैं जैसे
वे उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं. तभी एक युवा भक्त कहता है कि बाबा आज वेलेनटाइन डे
है और बाबा आप तो इसके बारे में सब जानते है. आप अंतर्यामी है और हम सब आपके मधुर
वाणी से इसके विषय में कुछ सुनना चाहते हैं. चूँकि बाबा प्रेमनाथ अपने भक्तों का
बहुत ख्याल रखते हैं और उनकी बात को वे ना कहना नहीं चाहते हैं. इसी कारण बाबा
उन्हें इस पावन पर्व की गौरव गाथा बताने के लिए तैयार हो जाते है.वे कहते है कि मैं
आप लोग को इसकी कहानी सुनाने जा रहा हूं. आप इसे ध्यान से सुनिए और देखिए यह कितने त्याग
और परिश्रम की कथा है.
बहुत पहले की बात है.
प्रेमलाल कॉलेज में रतिकिशन नाम का एक लड़का पढ़ता था. प्यार से वहाँ के सभी लड़के
उसे रिक्स कहकर पुकारते थे. वह अत्यंत मेहनती लड़का था. इतना मेहनती था कि वह पूरे
कॉलेज में सात- सात गर्लफ्रेंड का बोझ अकेले उठाता था. वह अपना पेट काट- काटकर और
सभी बसों में स्टाफ चलाकरजो कुछ बचाता उसे अगले दिन कॉलेज की कैंटीन में जाकर
देवियों की चरणों में अर्पित कर देता था. ऐसा वह एकदिन नहीं बल्कि प्रतिदिन करता
था. किताबें पढ़ते- पढ़ते और असाइनमेंट बनाते- बनाते वह कब “लव-लेटर” लिखने बैठ जाता
उसे पता ही नहीं चलता. वह एक बार पहले लव-लेटर लिखता,उसे पढ़ता फिर ना जाने उसे क्या होता कि उसे फाड़कर फेंका
देता. और पुन: लिखने के लिए बेचैन हो जाता था. ऐसा करते- करते कब रात खत्म हो
जातीऔए सुबह की लाली आ जाती उसे पता नहीं चल पाता था. जब वह लव-लेटर लिखने में कामयाब
नहीं हो पाता तो वह सुबह- सुबह तैयार होकर अपने मोबाईल पर एस. एम. एस. करने लग
जाता. एस. एम. एस. करते- करते कीपैड पर उसके अंगूठे और उसके अंगूठे पर कीपैड का
रंग इस तरह चढ़ चुका था कि दोनों में अंतर करना मुश्किल लगता था. रिक्स पिछले कई
वर्षॉ से निरंतर फेल होकर अपनी क्लास और कॉलेज की प्रतिष्ठा बचाए हुए थे. इन गुजरे
सालों में ना जाने कितनी लडकियाँ उसके सामने से निकल गईं लेकिन रिक्स उस कक्षा से
हिला तक नहीं क्योकि वह स्वभाव का पक्का था. यह कहते हुए बाबा की आँखें भर आईं. तभी
एक भक्त ने कहा “ बाबा प्रेमनाथ की जय” और सभी भक्त एक सुर में बाबा की जयकार करने
लगे.
बाबा की आँखे भर आईं थी जिसके कारण उनका गला सुख गया था तब
बाबाने पास में रखे हुए एक बोतल को अपने मुख से लगाकर गला गिला करते हुए बोले--- “
धन्य हो प्रेम भक्त, महाप्रतापी रतिकिशन जी ! आजकल के युवाओं में इतना बलिदान
देखने को कहाँ मिलता है. आपके चरणों में मेरा कोटि- कोटि नमन.” यह बोलकर बाबा नें
शंख की पहली गूँज सुनाई. इसके साथ ही इस गौरव गाथा का पहला चरण यहाँ समाप्त
हुआ.आगे की कथा सुनाने से पहले बाबा ने भक्तों में कुछ लाल गुलाब बाँटे और यज्ञ की
अग्नि प्रज्ज्वलित की. वे बार- बार बीयर की कुछ बूँदें ,व्हीस्की
में मिलाकरखून से लिखे लव-लेटरों को यज्ञ- कुंड डालते जा रहे थे., जिससेकि अग्निकी धारा शांत ना हो. आगे की कथा सुनाते हुए वे बोले------
एक बार रतिकिशन ने ऐसा महान काम किया कि आनेवाले कई दिनों
तक उन्हें इसी महानता के लिए उन्हें याद किया गया. हुआ यूँ कि एक लड़की ने उनसे ”प्रेममिलन”
फिल्म देखने की इच्छा जाहिर की. फिर क्या था बाबाने तथास्तु कह उस लड़की से वादा कर
दिया कि” शुक्रवार का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो तेरे नाम बालिके” राजपूतों ने
शायद रतिकिशन बाबा से ही अपने वादे पर मर-मिटने की बात सीखी होगी. बाबा वादा कर
चुके थे और जेब में एक फूटी कौड़ी नहीं थी. और एक टिकिट की कीमत लगभग 200 रुपया था.
साथ में कुछ खान-पान अलग. इतने पैसे का इंतजाम कैसे किया जाए उन्हें यहीं चिंता
खाए जा रही थी. किसीसे उधार भी नहीं माँग सकते थे क्योंकि उधार माँगना उनकेशान के
खिलाफ था.बाबा वचनबद्ध हो गए थे, इसलिए उन्हें पैसों का
इंतजाम करना भी अनिवार्य था. एक युवा भक्त अत्यंत जिज्ञासा से उनकी बात सुन रहा
था. जब उससेनहीं रहा गया तो उसने पूछा कि बाबा जल्दी बताओ कि रतिकिशन ने पैसों का
इंतजाम कैसे किया.आगे बाबा ने बताया कि रतिकिशन ने वह बलिदानदिया जिसके लिए भावीप्रेमीजन
उन्हेंहमेशा याद रखेंगे. रतिकिशन ने अपनीकीमती किताबें रद्दी के भाव बेच दी और किसी
तरह 500 रुपया उपराकर अपने वचन को निभाया. बाबा एक सच्चे सामजसेवी थे तभी तो उन्होंने
स्वहित से उपर उठकर एक बालिका की खुशी के लिए इतना बड़ा त्याग किया था. ऐसा उन्होंने
एक बार नहीं किया था बल्कि कई बार तो उन्होंने बालिका को खुश रखने के लिए अपने कपड़े
तक बेच दिए थे. बाबा के कॉलेज के दिनों में ही यह परंपरा चल पड़ी कि एक खास दिन प्रेमी
अपनी प्रेमिका को या प्रेमिका अपने प्रेमी को कुछ न कुछ भेंट करेंगे. और ऐसा करने से
दोनों के प्रेम –प्रक्रिया में बढ़ोतरी होगी. फिर क्या था युवाओं ने सोचा कि प्रेम यदि
कुछ देने से बढ़ेगा तो क्यूँ न रोज ही कुछ दिया जाए. इसके बाद रोज लडकियों को रोज तोहफे
में अच्छी किस्म ककी सब्जियाँ,फल और फूल मिलने लगे. कभी गोभी
का फूल मिलता तो गोभी का पराठाँ बनता. कभी भिंडी मिलता तो भिंडी की भाजी बनती, कभी कोई कड़वा करेला दे देता तो उसे भरवा करेला बनाकर खा लिया जाता. छात्रों
की भारी माँग के चलते कॉलेज कैंटीन में ही एक छोटी सी सब्जी मंडी लगा दी गई. धीरे-
धीरे यह परंपरा विश्वविद्यालय के अन्य कॉलेजों तक पहुँच गई. धीरे- धीरे यह बात पूरे
देश में फैल गई. तब कुछ देश की कट्टर संस्कृतिवादी संगठनों ने इसका विरोध भी किया और
बाद में यह एलान कर दिया कि जहाँ कहीं भी प्रेमी-युगल युगलबंदी करते हुए पाए जाएँगे
तो वहाँ रक्षा- बंधन का त्योहार मनवादिया जाएगा. शुरुआत में कुछ हद तक यह सही रहा लेकिन
बाद में यह राखी प्यार का लाइसेंस बन गई. अब प्रेमीजन आराम से अपने हाथों पर राखी बाँध
कर निकलते और अपनी प्रेमिकाओं के साथ इन्हीं सैनिकों की छत्रछया में प्रेम के पींगे
बढ़ाते हुए गाते— “आशिक बनाया, आशिक बनाया आपने.” इससे किसी को
शक भी ना होता और उनकी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती. बाबा रतिकिशन को तो राखियों का हार
तक पहनना पड़ जाता क्योंकि उनके बहनों की संख्या ज्यादा थी. जब इस बात का पता संस्कृतिवादी
संगठनों को चला तो वे सकतेमेंआगए.फिर उन्होंने पता लगाना शुरू किया कि ऐसा क्यों हुआ
है तो उन्हें पता चला कि यह सोच रतिकिशन की है और उसी के कारण आज संस्कृति भंग हो र्ही
है. फिर क्या था उन्हें बंदी बना लिया गया,और खाना- पीना बंद
कर दिया गया. लेकिन रतिकिशन तनिक भी व्याकुल नहुए.तभी उस संगठन का सरगना ने आदेश दिया कि रतिकिशन की शादी करा दी जाए. यह सुनकर
रतिकिशन व्याकुल हो गए. यह सजा रतिकिशन के लिए मृत्युदंड से भी बढ़कर था और विवाह के
दिन विवाह की वेदी पर उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया.बाबा के मरते ही चारों ओर जनाक्रोश
फैल गया और युवाओं ने विध्वंस फैलाना शुरु कर दिया. यह देखकर उस संगठन के सरदार ने एक प्रार्थनासभा बुलाकर घोषणा की कि—“ रतिकिशन
जी बड़े ही वीर पुरुष थे. इस युद्ध भूमि में उन्हें वीरगति प्राप्त हुई है.वे मरे नहीं
अमर हो गए हैं.हम उनके बलिदान को खाली नहीं जाने देंगे और उनके बलिदान वाले दिन को
‘वेलेंटाइन डे’ के रूप में मनाया करेंगे.
और इस दिन आपस में लोग एक दूसरे से फूल बदलकर बाबा की महान स्तुति करेंगे. भक्तों यह
कथा यहीं समाप्त होती है लेकिन वास्तव में बाबा अमर हैं. हर वर्ष हर घर में वे अवतार
लेते हैं और अपने अधूरे सपने को आप जैसे ही युवा प्रेमियों के रूप में पूरा करते हैं.
भक्तों अपने अंतर्मन में झाँको और उस पुण्य आत्मा को अपने भीतर टटोलो.
यह कहते ही बाबा प्रेमनाथ अंतर्ध्यान हो गए. सामने बैठे हुए
युवा भक्तों की नेत्रों से करुणा की धार बह निकली. यज्ञ से बचा हुआ प्रसाद जिसमें कुछ
बीयर, व्हीस्की, केक, पेस्ट्रीज तथा
पीत्जा आदि लेकर सभी भक्त बाबा का भजन ”किस किस को किस करूँ“ गाते हुए अपने घर की ओर
प्रस्थान कर गए.
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