गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

मानवीय चेहरा

चारो तरफ भीड़ ही भीड़
मेला ही मेला,
दोस्त ही दोस्त,
फिर भी कितना तनहा है इन्सान?
क्योंकि
वह सुबह से शाम तक
एक मशीन कि तरह
बेखबर,बेहोश,
अंजाम से अनजान
किसी मंजिल कि ओर
भाग रहा है,
इस भागम-भाग में
वह सभी रिश्तो -नातो,
यहाँ तक अपने परिवार से
छूटता जा रहा है.

लेकिन उसे पता है कि
इतना होने पर भी वह
इस दिखावटी समाज में
धनवान बनने कि ओर
अग्रसर है.
इस धनवान बनने कि
प्रक्रिया में चाहे
उसका मानवीय चेहरा
पीछे रह जाये.

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

दुःख-सुख

मैं बहुत दुखी हूँ
क्योकिं
मेरे दोस्त के पास
बड़ी-बड़ी कारें हैं,
आलीशान कोठी है,
दो फैक्ट्रियां हैं ,
सुन्दर पत्नी और
स्वस्थ बच्चे हैं,
करोड़ों का बैंक बैलेंस है.
मगर मेरे इस दुःख को,
एक सुख दबाये बैठा है
सुनेंगे आप वह क्या है ?
वह है चैन और सकून कि जिंदगी
जो कि मेरे पास है,
और मेरे दोस्त से कोसों दूर है.
तभी मुझे ख्याल आता है
कि मेरा सुख उसके सुख से
ज्यादा सुखदायी है. 

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

अनमोल बिटिया

मैंने जब उसे पहली बार देखा,
तो मेरी अपलक आखें
उसे देखती रह गयी,
देखकर सोचा कि
कहीं ना कहीं
यह मेरी ही प्रतिमूर्ति है,
जिसके लिए मैं बेचैन था
जब उसे हाथों में उठाकर,
 अपने में समेटना चाहा तो
 लगा कि वह बदजबान
मुझसे कुछ कहना चाह रही है.
शायद वह कह रही है,
कि आप परेशां ना हो,
मै आपके घर बोझ बनकर नहीं,
अपितु लक्ष्मी बनकर आई हूँ.
सदेव आपकी सेवा करूंगी ,
ओर आपकी चरणों में रहूंगी.
तो मुझे लगा कि,
बिटिया कितनी अनमोल होती है

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

बदलते चेहरे

चेहरे को अपने
 आईने में देखकर
हो गया भौचक्का
मुझे लगा ही नहीं
की यह मेरा चेहरा है
क्योकिं
इसमें तो मासूमियत और
मुस्कान बस्ती थी.
जो सभी को अपनी तुतुलाहट से
अपनी तरफ आकर्षित करती थी,
मेरी हर नासमझी पर माँ
प्यार से दुत्कारती थी.
मेरा मन  कहने लगा कि मैंने,
अपने चेहरे को बिगाड़ लिया है,
नहीं ऐसा नहीं हो सकता मैंने
अपने चेहरे को ख़राब नहीं किया
ऐसा काम तो समाज और
ख़राब समय ही कर सकता है
शायद इन्होने ही मेरे चेहरे पर
कुरूपता डाल दी है.
और यह निरंतर परिवर्तित होकर
भयानक हो गयी है

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

एलबम में रहने लगा है.


अपने परिवार से जब मैं,
चाहकर भी नहीं मिल पाता
तो जाकर घर में रखी हुई
एलबम खोल लेता हूँ.
एलबम देखकर लगता है
ऐसा कि आज की भागदौड
भरी जिन्दगी में,
परिवार बिखर कर एलबम में
रहने लगा है.
इसे देखकर और मोबाईल से,
बात कर खुद को हम
समझा लेते हैं.
पर क्या ऐसा कर,
अपने बच्चों को हम
दादा-दादी और नाना-नानी
के प्यार से दूर नहीं कर रहे हैं.
आज का एकल परिवार
अपने रिश्ते नातों से अलग,
रहकर खुद को केवल अपने आप
में सिमटने लगा है.

लव लेटर पर भारी सोशल नेट्वर्किंग


एक जमाना था. जब प्रेमी जोड़ों के लिये लव लेटर अपनी भावनाओ को एक दूसरे तक पहुँचाने के लिये महत्वपूर्ण साधन हुआ करता था. वे लव लेटर के द्वारा ही अपने प्रेम को आगे बढाते थे.लेकिन अब जमाना बदल गया है.अब कोई पत्र लिखना नहीं चाहता बल्कि सोशल नेट्वर्किंग जैसे- फेसबुक,टिवटर,मेल आदि के द्वारा ही अपनी भावनाओं का अदान-प्रदान कर लेते है
एक शोध के अनुसार अब लोग पत्र लिखने के बजाए अपने प्रेमी या प्रेमिका को फेसबुक या टिवटर पर संदेश भेजना पसंद करते है.आजकल केवल 9% लोग ही पत्र लिखते हैं.इनमें से भी अधिकतर लोगों की उम्र 50 वर्ष से अधिक है,जबकि दो तिहाई लोग आई लव यू लिखकर मेल करना पसंद करते है.इसके अतिरिक्त 14% लोग अपनी भावनाओं के अदान-प्रदान के लिये फेसबुक आरकूट या टिवटर का प्रयोग करते हैं.