औरत
मैं बेटी हूँ,माँ हूँ, नानी हूँ,
और शायद दस साल बाद,
परनानी भी बन जाऊँ.
लेकिन इन सबसे पहले,
मैं औरत हूँ.
ऐसी औरत जो लगातार,
अभी तक जुल्म सहती रही,
समाज ने अभी तक,
उसे दोयम दर्जे मे रखा है.
समाज के इन्हीं ठेकेदारों ने
अपने अनुसार औरत को
कभी गांधारी,तो कभी सीता,
कभी शूर्पणखा तो
कभी पांचाली बनाया है.
अनाचार और अत्याचार सहते-सहते
हमने अपनी शक्ति को भुला डाला है.
लेकिन अब बहुत हो चुका.
अब तो औरत द्रोपदी बनकर
जालिमों और दरिंदों को,
उनके अंजाम तक पहुँचाएगी.
तभी वह अपने औरत,
होने का हक
अदा कर पाएगी.