अपने परिवार से जब मैं,
चाहकर भी नहीं मिल पाता
तो जाकर घर में रखी हुई
एलबम खोल लेता हूँ.
एलबम देखकर लगता है
ऐसा कि आज की भागदौड
भरी जिन्दगी में,
परिवार बिखर कर एलबम में
रहने लगा है.
इसे देखकर और मोबाईल से,
बात कर खुद को हम
समझा लेते हैं.
पर क्या ऐसा कर,
अपने बच्चों को हम
दादा-दादी और नाना-नानी
के प्यार से दूर नहीं कर रहे हैं.
आज का एकल परिवार
अपने रिश्ते नातों से अलग,
रहकर खुद को केवल अपने आप
में सिमटने लगा है.
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