उसके
जीवन का स्वप्न,
उसकी
यातना का स्त्रोत
बन
गया क्योकिं
उसका
स्वप्न हवा से भी,
तेज
चल निकला
उस
स्वप्न की पकड़न में,
वह
बेसुध होकर
आगे
बढ़ने लगा और,
छूटने
लगे सारे रिश्ते-नाते.
वह
अकेला बढ़ता गया
कई
उचाँईयों को पाता हुआ
स्वप्न
के अभिमान में मस्त,
वह
इतना आगे निकल पड़ा,
कि
पीछे आना मुश्किल था.
उस
उचाँई से गिरने पर
संभलना
मुश्किल था
लेकिन
जिस तरह हर
स्वप्न
हकीकत नहीं होती.
उसी
तरह जब वह अपने,
स्वप्नरूपी
महल से नीचे गिरा.
तो
मुँह से केवल आह निकली,
लेकिन
उस आह को सुननेवाला,
उसका
कोई अपना न था.
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