शनिवार, 4 सितंबर 2010

विस्वास

जीवन की डोर,न कोई ओर
न कोई छोर, पर एक मजबूत बंधन
जिसे बांधनें की होड़
में हमेशा रहा हू मैं दौड़
पता नहीं इस दौड़ में मुझे
क्या मिलेगा?
लेकिन है आंतरिक विशवास
जो मिलेगा वह
सबसे हटकर होगा
क्योकि
सबसे हटकर जीना ही
जीना है...................

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