रविवार, 12 मई 2013

मातृ -दिवस पर


भारतीय संस्कृति में माता- पिता के चरणों में स्वर्ग होने की बात कही गई है. महाभारत में बताया गया है जैसे भूमि के समान कोई दान नहीं, सत्य के समान कोई धर्म नहीं, दान के समान कोई पुण्य नहीं, वैसे ही माता-पिता समान कोई गुरु नहीं.महाभारत में ही भीष्म कहते हैं कि आचार्यों से दसगुणा ज्यादा गौरव उपाध्याय का होता है,उपाध्याय से दस गुणा ज्यादा गौरव पिता का होता है और पिता से दस गुणा ज्यादा गौरव माता का होता है.इसीकारण माना गया है कि माता के ऋण से कोई कैसे एक दिन में मुक्त हो सकता है उनके ऋण से तो साल के 365 दिन में भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता है.माँ के बिना तो ममता और प्यार की कल्पना भी नहीं की जा सकती.इस प्यारऔर ममता को केवल हम एक दिन थोड़ा बहुत स्मरण कर सकते हैं. माँ की इस ममता को मुनव्वर राणा ने दो पंक्तियों में इस तरह व्यक्त किया है..
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छिपा लेगी मुझे,
माँ कभी भी सर पर खुली छत नहीं रहने देगी....

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