बुधवार, 14 सितंबर 2011

एलबम में रहती हैं खुशियाँ


मैं दूर हूँ अपने माता-पिता से,
और जब उनकी याद आती है,
चाहकर भी मैं उनसे नहीं मिल पाता
तो जाकर घर में रखी हुई,
एलबम खोल लेता हूँ.
उसे देखकर ऐसा लगता है,
कि आज के बजारवाद और,
भागमभाग भरी जिन्दगी में,
परिवार बिखर कर,
एलबम में रहने लगे हैं.
एलबम देखकर और फोन से बात कर,
किसी तरह अपने आप को समझाता हूँ,
पहले पापा जब मेरा जन्मदिन मनाते,
तो ऐसा मह्सूस होता कि,
मैं जीवन के एक नए,
वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ.
आज जब सब कुछ है,
पर जीवन में वह खुशी,
और मिठास नहीं है.
क्योंकि,
वह गुजरा हुआ पल साथ नहीं है.
जिसे मैनें अपने परिवार के साथ बिताया था.
फिर मैं एलबम खोल उस मधुर स्मृति में खोकर,
अनायास ही कहता हूँ कि,
अब एलबम में रहती हैं खुशियाँ......


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