शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

बेटियाँ


बोए जाते हैं बेटे,
और उग जाती हैं बेटियाँ.
खाद-पानी बेटों में,
और लहलहाती हैं बेटियाँ.
एवरेस्ट की ऊँचाईयों तक,
ठेले जाते हैं बेटे,
और चढ़ जाती हैं बेटियाँ
कई तरह गिरते हैं बेटे,
संभाल लेती हैं बेटियाँ.
रूलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियाँ
सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे,
जीवन की यथार्थ हैं बेटियाँ.
जीवन तो बेटों का है
और मारी जाती हैं बेटियाँ....................

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