रविवार, 11 सितंबर 2011

सच्चाई

सच्चाई

मैनें सुना है कि,
कुछ खोना सच्चाई है,
लेकिन अपना देश ,
जो लगातार कुछ खो
रहा है वह कैसी सच्चाई है?
कभी भ्रष्टाचार से,
कभी आतंकवाद से,
कभी धार्मिक उन्माद से,
तो कभी साम्प्रादायिक्ता से,
इनके सामने हम लगातार बेवस हैं.
कलहिं जो लोग न्याय के आस में,
उच्च न्यायलय गये थे,
उन्हें न्याय तो न मिला लेकिन,
आतंकवादियों ने उनके जीवन की,
अंतिम तारीख जरूर डाल दी.
जिसने अपने भाई-बन्धुओं को खोया है,
उन्हें पता है कि वे,
किस सच्चाई से गुजर रहे हैं.
इतने बड़ॆ हमले के बाद भी हमारे नेता,
चैनल पर बैठकर मरहम लगाने से परे,
अपनी राजनीतिक गोटी सेंक रहे थे,
तब मुझे लगा कि जब तक ऐसे,
नेताओं को जीवन की सच्चाई का,
पता नहीं होगा तब तक हमारा,
देश ऐसे ही अपूर्ण सच्चाई के
ईर्द-गिर्द घुमता रहेगा......


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