गुरुवार, 13 जनवरी 2011

कर्मभूमि का कथासार

प्रेमचंद द्वारा लिखित कर्मभूमि उपन्यास वर्ग संघर्ष पर आधारित एक सामाजिक उपन्यास है.इसमें लेखक ने समरकान्त और उसके परिवार के माध्यम से वर्ग -भेद की समस्या को विवेचित करते हुए उसका निदान प्रस्तुत किया है.काशी के धनवान व्यक्ति समरकान्त दो-दो विवाह करने पर भी अंततः विधुर जीवन व्यतीत करते है.दोनों पत्नियों से उन्हें क्रमशः एक पुत्र अमरकांत और एक पुत्री नैना की प्राप्ति होती है जिनमे परस्पर अपूर्व स्नेह रहता है.लाला समरकान्त अत्यंत लोभी व्यक्ति हैं,अतः उन्हें समरकान्त की शिक्षा पर व्यय करना उचित नहीं लगता.वे उसे व्यापार में लगाना चाहते हैं .उनकी इसी वृति के कारण अमर समय पर फीस नहीं दे पाता.उसका मित्र सलीम उसकी फीस भरता है
अमरकांत सामजिक विचारधारा का स्वाभिमानी युवक था.वह चरखा काटकर और व्यापारियों के यहाँ हिसाब-किताब रखकर अपनी शिक्षा का व्यय निकालता है .और अपने अटूट परिश्रम से मैट्रिक में प्रथम श्रेणी प्राप्त करता है.समरकान्त उसका विवाह लखनऊ की एक धनी विधवा रेणुका की पुत्री सुखदा से कर देते हैं जो उन्ही की तरह धना कमाने औए संचय करने में विश्वास करती है.आगे उपन्यासकार ने अमरकांत की विचारधारा को बदलने के लिए दूकान पर चोरी के कंगन बेचने आये काले खान तथा शराबी गोरों और मेम द्वारा सोनें की जंजीर बेचने और भिखारिन द्वारा गोरों को आहत करने की घटनाओं का आयोजन किया है। जिससे अमरकांत पुनः पिता के व्यापार से घृणा करने लगता है.अमरकांत की मुलाक़ात वृद्ध पठानिन और उसकी पोती सकीना से कराकर लेखाका ने कथा में सरसता का संचार किया है.आगे अमर और सकीना के ह्रदय में परस्पर एक दूसरे के लिए कोमल भाव जाग्रत हो जाते हैं।
जब अमरकांत डॉक्टर शान्ति कुमार के सेवाश्रम में काम करने लगता है तो उससे क्षुब्ध होकर समरकान्त उसे घर से अलग कर देता है.अमरकांत अपने परिवार ,बहन नैना और बूढ़ी नौकरानी सिल्लो के साथ दस रूपये किराए के मकान में रहने लगता है.वह खादी बेचकर तथा सुखदा बालिका विद्यालय में नौकरी करके घर का खर्चा चलाने लगते हैं.नैना का विवाह रईस लाला धनी राम की पुत्र मनीराम से होता हैजोव्यसनी तथादुराचरी है.गृहस्थी के सुख से वंचित नैना समाज सेवा में लगा जाती है.निर्धनों को जमीन औए मकान देने के लिए आयोजित आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए अपने पति की गोली का शिकार हो जाती है।
कलक्टर बनकर सलीम उसी गाँव में आता है जहां अमरकांत रहता था। अमरकांत अपने गाँव के किसानों का लगान माफ़ कराने का अनुरोध न माने जाने पर एक सभा आयोजित करता है। उसमें उसके जोशीले भाषण से उतेजित होकर किसान विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं। इसे देखकर पुलिस अमरकांत को गिरफ्तार करना चाहती है। उसी समय अमरकांत की प्रशंसक मुन्नी गांववालों को पुलिस के खिलाफ भड़काती है.इसी कारण मुन्नी पर मुकदमा चलाया जाता है।
अंत में नैना की मृत्यु के पश्चात सेठ धनीराम ने अपनी जमीन गरीबों को दान कर दी। म्यूनिसिपल बोर्ड के अनुरोध पर न केवल सभी कैदी छोड़ दिए गए अपितु सलीम ,अमर आदि पांच व्यक्तियों की कमेटी किसानों की लगान माफी पर विचार करने के लिए नियुक्त की गयी जिसके परासों से वर्ग संघर्घ समाप्त हुआ तथा एक स्वस्थ -प्रसन्न ,समभाव युक्त समाज का निर्माण हुआ।

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सर आप के इस लेख से हमे कर्मभुमि मे कुछ ओर तथ्य पर विचार करने के बिंदु दिखाई दिए

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  2. बहुत सुंदर ह जी थोड़ा और विस्तार हो जाता तो और भी ज्यादा अच्छा हो जाता

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  3. बहुत सुंदर सराहनीय प्रयास

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  6. अच्छी ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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  7. अति सुंदर तरीके से कथासार बताया गया है

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  8. बहुत सुंदर,गुरुजी।आपके द्वारा किया गया कार्य सराहनीय है,कहीं पर थोड़ी-सी त्रुटिया है।कृपया इसे सुधार करने का प्रयास करें।
    जैसे-लेखक के बदले लेखाका लिखा गया है

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  9. यदि आप कुछ और विसतार से केह पाते तो अच्छा होता|

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  10. Pita ka naam Samarkaant hai aur putra Amarkant hai. Amarkant mukhye patr jai

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