बुधवार, 9 सितंबर 2009

पिता की चाहत

शादी का मंडप सजा हुआ था
द्वार पूजा होने वाली थी
दूल्हा घोडे पर बैठा मुस्करा रहा था
और
उसके दोस्त बाजे की ताल
के साथ नाच रहे थे
चारो तरफ ख़ुशी का माहोल था
लेकिन
इस ख़ुशी के माहोल के बीच
एक की आखें गमगीन थी
उसे पता था की आज उसकी लड़की
किसी और की हो जायेगी
फिर उसने मन ही मन सोचा की
हर बाप अपनी बेटी को विदा करता है
इसमें उदास होने की क्या बात है
लेकिन उसकी आँखें कुछ और बता रही थीं
उसकी बेटी प्रेम विवाह कर रही थी
वह भी ऐसे लड़के के साथ
जो शराबी और कबाबी है
लेकिन वह अपनी बेटी के जिद
के आगे मजबूर है क्योकि
वह उसकी एकलोती बेटी है
और इस चाह के आगे वह आपनी
चाहत को मार रहा है

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ढंग से लिखा. शुक्रिया . जारी रहें.

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