शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

आज का अखबार


आज का अखबार

रोज मैं सबकी हाथों की खबर बनता हूँ,
चार रुपए में मुझे बेचा जाता है,
सभी सुबह उठकर  मुझे,
अपने हाथों में लेना चाह्ते हैं,
तनिक भी देरी  होने पर,
बेचैनी से मेरा इंतजार करते हैं,
कई लोग मुझे पढ़कर खुश होते  हैं,
तो कई लोग परेशान  होते हैं,
सभी अपनी धून में रमे हैं,
किसी को मेरी चिंता नहीं है,
आज मैं केवल सनसनी बन गया हूँ,
मेरी मांग तब और बढ़ जाती है,
जब बालात्कार की सनसनी खेज,
बनाकर मुझे परोसा जाता है,
रोज ही मैं बेइमानी, चोरी, भ्रष्टाचार,
बच्चों पर जुल्म, नेताओं के ढकोसले,
आदि बयाँ करता हूँ,
आज मेरे अस्तित्व की लौ भी,
धीरे- धीरे खत्म हो रही है,
खबर छापने की आड़ में,
लोगों को मेरे नाम पर,
लूटा जा रहा है,
इससे मैं अपनों द्वारा ही
बेइमान बनाया जा रहा हूँ,
मैं आज की गंदी होड़ में शामिल हूँ
मैं ही आज का अखबार हूँ.....

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